फिर अपने गाँवों को


फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे।।
गाँवों की गलियाँ क्यों, गन्दी रहने देंगे।
गन्दगी नरक जैसी ,, अब क्यों सहने देंगे।।
सहयोग और श्रम से, यह नरक हटायेंगे।।
रहने देंगे बाकी, अब मन का मैल नहीं।
अब भेदभाव का हम, खेलेंगे खेल नहीं।।
सब भाई- भाई हैं, सब मिलकर गायेंगे।।
देवों जैसा होगा, चिन्तन व्यवहार चलन।
सद्भाव भरे होंगे, सबके ही निर्मल मन।।
फिर तो सबके सुख- दुःख, सबमें बँट जायेंगे।।
शोषण उत्पीड़न का, फिर नाम नहीं होगा।
फिर पीड़ा और पतन का, काम नहीं होगा।।
सोने की चिड़ियाँ हम, फिर से कहलायेंगे।।
फिर अपने गाँवों को  फिर अपने गाँवों को Reviewed by Harshit on March 27, 2020 Rating: 5

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