एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी।
आपदा आये भले, मत छोड़ना संकल्प अपने।
हो सघन मत टूटने, देना कहीं सुकुमार सपने।।
देखना मुड़कर भला क्या? पंख बींधे कण्टकों को।
मत कभी देना महा, मार्ग- व्यापी संकटों को।।
एक दिन ही जी, सफल अभियान बनकर जी!
हो सघन मत टूटने, देना कहीं सुकुमार सपने।।
देखना मुड़कर भला क्या? पंख बींधे कण्टकों को।
मत कभी देना महा, मार्ग- व्यापी संकटों को।।
एक दिन ही जी, सफल अभियान बनकर जी!
एक छोटी नाव, उसके ही सहारे पार जाना।
हो भले तुफान राही! सोचना मत, जूझ जाना।।
कष्ट सहकर भी स्वयं, इस विश्व का उपकार कर जा।
छोड़ जा पदचिन्ह अपने, तीर्थ नव- निर्माण कर जा।।
एक दिन ही जी, जगत की शान बनकर जी!
हो भले तुफान राही! सोचना मत, जूझ जाना।।
कष्ट सहकर भी स्वयं, इस विश्व का उपकार कर जा।
छोड़ जा पदचिन्ह अपने, तीर्थ नव- निर्माण कर जा।।
एक दिन ही जी, जगत की शान बनकर जी!
चमक बिजली- सा गगन में, जब कभी छायें घटायें।
बन अडिग चट्टान! तुझसे, आंधियाँ जब जूझ जायें।।
कुछ नहीं कठिनाइयाँ, विश्वास की ज्वाला जलाले।
युग नया निर्माण करने, की अटल सौगन्ध खा ले।।
एक दिन ही जी, मगर वरदान बनकर जी!
बन अडिग चट्टान! तुझसे, आंधियाँ जब जूझ जायें।।
कुछ नहीं कठिनाइयाँ, विश्वास की ज्वाला जलाले।
युग नया निर्माण करने, की अटल सौगन्ध खा ले।।
एक दिन ही जी, मगर वरदान बनकर जी!
एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी
Reviewed by Harshit
on
March 27, 2020
Rating:
No comments: