स्काउट एवं गाइड आंदोलन वर्ष 1908 में
ब्रिटेन में सर बेडेन पॉवेल
द्वारा आरम्भ किया गया। धीरे-धीरे यह
आंदोलन हर एक सुसंगठित राष्ट्र में
फैलने लगा, जिसमे भारत भी शामिल
था।
भारत में स्काउटिंग की शुरुआत वर्ष 1909 में
हुई, तथा आगे चलकर भारत
वर्ष 1938
में स्काउट आंदोलन के विश्व संगठन का
सदस्य भी बना। वर्ष 1911 में भारत में गाइडिंग की शुरुआत हुई, तथा 1928 में
स्थापित गर्ल गाइड्स तथा गर्ल स्काउट्स के विश्व संगठन में भारत ने एक संस्थापक सदस्य
की भूमिका निभाई।
भारतवासियों के लिए स्काउटिंग की शुरूआत
न्यायाधीश विवियन बोस, पंडित
मदन मोहन मालवीय, पंडित हृदयनाथ कुंजरू, गिरिजा शंकर बाजपेई, एनी बेसेंट तथा जॉर्ज अरुंडाले के प्रयासों से वर्ष 1913 में
हुई।
भारत में ‘भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (बी.एस.जी.)’ राष्ट्रीय स्काउटिंग एवं गाइडिंग संगठन
है। इसकी स्थापना 7 नवम्बर, 1950 को स्वतंत्र
भारत में जवाहरलाल
नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद तथा मंगल
दास पकवासा के द्वारा की गई।
इसमें ब्रिटिश भारत
में मौजूद सभी स्काउट एवं गाइड संगठनों को सम्मिलित किया गया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में
स्थित है। इसके एक वर्ष पश्चात् 15 अगस्त,
1951 को आल इंडिया गर्ल
गाइड्स एसोसिएशन को भी भारत स्काउट्स एंड गाइड्स संगठन में शामिल कर लिया गया।विश्व स्काउट संगठन में वर्ष 1947 से 1949 तक अपने अहम योगदान के लिए विवियन बोस जी को विशेष तौर पर याद किया जाता है। वर्ष 1969 में विश्व स्काउटिंग में अद्वितीय सेवा के लिए श्रीमती लक्ष्मी मजूमदार को विश्व स्काउटिंग द्वारा ‘ब्रॉन्ज़-वोल्फ’ सम्मान से सम्मानित किया गया था।
यह पुरुषों और लड़कों का एक जियो था कि वह 1901 में दक्षिण अफ्रीका से इंग्लैंड लौटे, सम्मान के साथ और अपने विस्मय को पता लगाने के लिए, कि उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता ने सेना के पुरुषों के लिए उनकी पुस्तक को लोकप्रियता दी थी - एम्स टू स्काउटिंग । यह लड़कों के स्कूलों में पाठ्यपुस्तक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।
बी.पी. इसमें एक बड़ी चुनौती देखी गई। उन्होंने महसूस किया कि यहाँ इस देश के लड़कों को मजबूत मासिक धर्म में मदद करने का उनका अवसर था। यदि स्काउटिंग प्रथाओं पर पुरुषों के लिए एक किताब लड़कों को दिखाई दे सकती है और उन्हें प्रेरित कर सकती है, तो खुद लड़कों के लिए लिखी गई किताब कितनी अधिक होगी! उन्होंने भारत और अफ्रीका में ज़ूलस और अन्य बर्बर जातियों के बीच अपने अनुभवों को अपनाने का काम किया। उन्होंने पुस्तकों के एक विशेष पुस्तकालय को इकट्ठा किया और सभी उम्र के लड़कों के प्रशिक्षण को पढ़ा - स्पार्टन लड़कों से, दुर्घटना ब्रिटिश, रेड इंडियंस से हमारे अपने दिन तक।
धीमी गति से और सावधानी से बी.पी. स्काउटिंग विचार विकसित किया। वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि यह काम करेगा, इसलिए 1907 की गर्मियों में वह बीस लड़कों के एक समूह को अपने साथ इंग्लिश चैनल के ब्रोवेसा द्वीप ले गया, जहां पहले बॉय स्काउट शिविर में दुनिया ने कभी देखा था। शिविर एक बड़ी सफलता थी। और फिर, 1908 के शुरुआती महीनों में, उन्होंने छह पाक्षिक भागों में खरीदा, खुद से सचित्र, प्रशिक्षण के लिए उनकी हैंडबुक, स्काउटिंग फॉर बॉयज़ ----- बिना सपने देखे कि यह किताब गति में सेट हो जाएगी, एक आंदोलन जो करने के लिए था पूरी दुनिया के लड़कपन को प्रभावित करते हैं।
लड़कों के लिए स्काउटिंग शायद ही किताब की दुकान में दिखाई देने लगी थी और स्काउट गश्ती और ट्रूप्स से पहले न्यूज़स्टैंड पर बस-इंग्लैंड में ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में शुरू हुआ था।
खुद की देखभाल करना सीखें
सच तो यह है कि सभ्य देश में लाए गए पुरुषों के पास खुद को वल्द या मैदानों में या पीछे के मैदानों में देखने के बाद कोई भी ट्रनिंग नहीं है। नतीजा यह है कि जब वे जंगली देश में जाते हैं तो वे लंबे समय तक पूरी तरह से असहाय हो जाते हैं और बहुत कठिनाई और परेशानी से गुजरते हैं जो अगर सीखा नहीं, तो लड़कों को शिविर में खुद की देखभाल करने के लिए, वे बहुत सारे हैं "tenderfoots"।
उन्हें कभी भी एक प्रकाश को या अपने स्वयं के भोजन को पकाने के लिए नहीं पड़ा है - जो हमेशा उनके लिए किया गया है। घर पर जब वे पानी चाहते थे, तो उन्हें केवल टैब की ओर मुड़ना पड़ा- इसलिए उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि घास, या झाड़ी को देखते हुए, या रेत पर खरोंच होने तक मरुस्थल में पानी खोजने के बारे में कैसे पता लगाया जाए। नमी के संकेत। यदि वे अपना रास्ता खो देते हैं, या समय नहीं जानते हैं, तो उन्हें केवल किसी और से पूछना होगा। उनके पास हमेशा रहने के लिए घर और उन्हें लेटने के लिए बिस्तर थे। उन्हें कभी भी अपने लिए नहीं बनाना पड़ता था, न ही अपने जूते या कपड़ों को बनाने या मरम्मत करने के लिए।
यही कारण है कि "टेंडरफुट" अक्सर शिविर में एक कठिन समय होता है। लेकिन स्काउट के लिए शिविर में रहना जो जानता है कि खेल एक साधारण मामला है। वह जानता है कि एक हजार छोटे तरीकों से खुद को सहज कैसे बनाया जा सकता है, और फिर जब वह सभ्यता में वापस आता है, तो वह इसके विपरीत देखने के लिए अधिक आनंद लेता है।
और यहाँ घटना, शहर में, वह साधारण नश्वर की तुलना में अपने लिए बहुत कुछ कर सकता है, जिसने वास्तव में कभी भी अपनी इच्छा के लिए प्रदान करना नहीं सीखा है। जिस व्यक्ति को स्काउट शिविर में काम करना होता है, वह बहुत सी चीजों को देखता है, क्योंकि जब वह स्काउट शिविर में काम करता है तो वह पाता है कि जब वह सभ्यता में आता है तो वह आसानी से रोजगार प्राप्त करने में सक्षम होता है, क्योंकि वह है किसी भी तरह के काम के लिए तैयार हो सकते हैं।
Scouting in Born
It
was a geo of men and boys that he returned to England from South Africa in
1901, to be showered with honors and to discover, to his amazement, that his
personal popularity had given popularity to his book for army men -- Aims to Scouting. It was being used as a
textbook in boy’s schools.
B.P.
saw a great challenge in this. He realized that here was his opportunity to
help the boys of this country to grow
into strong menhood. If a book for men on scouting practices could appear to
boys and inspire them, how much more would a book written for the boys
themselves! He set to work adapting his experiences in India and in Africa
among the Zulus and other savage tribes. He gathered a special library of books
and read of the training of boys through all ages—from the Spartan boys, the
accident British, the Red Indians, to our own day.
Slow and
carefully B.P. developed the Scouting idea. He wanted to be sure that it would
work, so in the summer of 1907 he took a group of twenty boys with him to
Brownsea Island in the English Channel for the first Boy Scout camp the
world had ever seen. The camp was a great success. And then, in the early
months of 1908, he bought out in six fortnightly parts, illustrated by himself,
his handbook for training, Scouting for Boys ----- without dreaming that this
book would set in motion, a Movement which was to affect boyhood of the entire
world.
Scouting
for Boys had hardly started to appear in the book shop and on the newsstands
before Scout patrols and Troops began to spring up- not just in England, but in
numerous other countries.
Learn to Look after yourself
The
truth is that men brought up in a civilized country have no tranining
whatever in looking after themselves out on the veldt or plains, or in
the backwoods. The consequence is that when they go into wild country
they are for a long time perfectly helpless and go through a lot of
hardship and trouble which not occur if they learned, while boys, to
look after themselves in camp, They are just a lot of “tenderfoots”.
They
have never had to light a fore or to cook their own food- that has
always been done for them. At home when they wanted water, they merely
had to turn to the tab- therefore they had no idea of how to set about
finding water in a desert place by looking at the grass, or bush, or by
scratching at the sand till they found signs of dampness. If they losts
their way, or did not know the time, they merely had to ask somebody
else. They had always had houses to shelter them and beds to lie in. They had never had to make them for themselves, nor to make or repair their own boots or clothing.
That
is why “ tenderfoot” often has a tough time in camp. But living in camp
for a Scout who knows the game is a simple matter. He knows how to make
himself comfortable in a thousand small ways, and then when he does
come back to civilization, he enjoys it all the more for having seen the
contrast.
And
event here, in the city, he can do very much more for himself than the
ordinary mortal, who has never really learned to provide for his own
wants. The man who has to turn his hand to many things, as the Scout
does in camp finds that when he to many things as the Scout does in camp
finds that when he comes into civilization he is more easily able to
obtain employment, because he is ready for whatever kind of work may
turn up.
सेना में ‘स्काउट’
शब्द का अर्थ होता है ‘गुप्तचर’। आज भी सेना में स्काउट होते हैं। स्काउटिंग को सेना के सीमित क्षेत्र से खींचकर जनसाधारण के बालक- बालिकाओं तक लाने का एक मात्र श्रेय लार्ड बेडेन पावेल को है। जिन्हें बाद में बी.पी. के नाम से भी सम्बोधित किया जाने लगा था।
लार्ड पावेल जिनका पूरा नाम राबर्ट स्टिफेन्सन स्मिथ बेडेन पावेल था, का जन्म 22 फरवरी,
1857 को लन्दन में रेवरेण्ड प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल के घर हुआ था। बी.पी. अभी तीन वर्ष के ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी माताश्री श्रीमती हेनरेटा ग्रेस स्मिथ ने अत्यंत कुशलता एवं साहस से परिवार की देखभाल की।
सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में ‘बोर युद्ध’ के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्ति, अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, कार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकाल, दोनों में, संसार को कितना लाभ पहुँचा सकते हैं।
बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया।
स्काउट शब्द का अर्थ है गुप्तचर या अग्रगामी ।सेना में एक ऐसी कड़ी काम करती है जो फौज के आगे-आगे चलकर अपनी सेना का मार्गदर्शन करती है।
तथा शत्रु सेना क गुप्त भेदों की जानकारी प्राप्त कर अपने अधिकारियों को देती है। उन्हें ही वहां स्काउट कहते हैं।
सार्वजनिक जीवन में स्काउटिंग 'सेवा' का पर्याय बन
चुकी है। आज यह आंदोलन विश्व स्तर पर समाज सेवी
संस्था के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।
स्काउटिंग के संस्थापक लार्ड बेडन पावल थे।उनका
जन्म 22 फरवरी 1857 को इंग्लैंड में हुआ।वे सन् 1876 में सैनिक परीक्षा में सफल हाकर एक फौजी अफसर (सब लेफ्टिनेंट)बनकर भारत में आए। भारत में उन्होनें स्काउटिंग के अनेक प्रयोग किए और इसके आधार पर ‘एड्स टू स्काउटिंग'" नामक पुस्तक लिखी ।
सन् 1899-1900 में दक्षिण अफ्रीका के बोअर युद्ध
में बोअर जाति के दमन का काम एडवर्ड सिसिल व बेडन पावल को सौंपा गया। अंग्रेजों के पास वहां सेना बहुत कम थी। एडवर्ड सिसिल ने मेफकिंग नगर के कुछ लड़कों को प्राथमिक सहायता ,शत्रु का भेद निकालना,संदेश भेजना,सुरक्षा आदि की ट्रेनिंग देकर विभिन्न कार्यों में लगा दिया और प्रशिक्षित सैनिकों को लड़ने के लिये मोर्चे पर भेज दिया। इस योजना से अंग्रेज विजयी हुए। इस घटना से बेडन पावल बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सोचा यदि यही प्रशिक्षण शांतिकाल में बालकों को दिया जाये तो हमारे
बालक अधिक जागरूक, साहसी, स्वस्थ व कर्तव्य परायण बन सकते हैं।
इसी योजना को व्यावहारिक रूप देने के लिये
बेडन पावल ने 20 बालकों को लेकर प्रथम प्रायोगिक
शिविर 29 जुलाई से 9 अगस्त 1907 तक ब्राउन-सी द्वीप ( इंग्लैंड ) में आयोजित किया। इस शिविर के अनुभवों व कैम्प फायर की कहानियों को पहले जनवरी से मार्च 1908 तक छ: पाक्षिक भागों में, फिर 1 मई 1908 को 'स्काउटिंग फॉर बॉयज' के रूप में प्रकाशित किया गया। इसके बाद यह स्काउट आंदोलन विश्व के कोने-कोने में फैलने लगा। भारत में सन 1909 में कैप्टन बेकर ने अंग्रेज बच्चों के लिए बैंगलोर में स्काउट दल खोला। इसमें केवल अंग्रेज व एंग्लोइण्डियन बच्चे ही भाग ले सकते थे। 1915-16 में श्रीमती एनीबेसेन्ट एवं डॉ. अरूणडे के प्रयासों से मद्रास में इंडियन बॉयज स्काउटएसोसिएशन की स्थापना हुई।
भारतीय बच्चों के लिए भारत में सर्वप्रथम 1913 में श्री राम बाजपेयी ने शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में एक स्काउट दल खोला। सन् 1918 में पं. मदन मोहन मालवीय के सुझाव व सहयोग से श्रीराम बाजपेयी व डॉ. हृदयनाथ कुंज ने प्रयाग,इलाहाबाद) में ‘सेवा समिति ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' की स्थापना की।
भारत में कई स्काउट व गाइड संगठन अलग -अलग काम करते रहे। आजादी के बाद 7 नवम्बर 1950
को ‘हिन्दुस्तान स्काउट एसोसियेशन' और 'द ब्वाय
स्काउट एसोसियेशन' मिलकर एक हो गये। इस नए
संगठन का नाम ''भारतस्काउट्स एवं गाइड्स' ' रखा
गया। गर्ल गाइड एसोसिएशन इण्डिया अब भी अलग ही काम कर रही थी। 15 अगस्त 1951 को यह संस्था भी भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में ही मिल गई। भारत में अब केवल यही संस्था केन्द्रीय व राज्य सरकारों द्वारा
मान्य है।
भारत का स्काउट विभाग अन्तर्राष्ट्रीय स्काउट-संघ (WOSM, जेनेवा (स्विटजरलैण्ड) व गाइड विभाग
विश्व गर्ल गाइड तथा गर्ल्स स्काउट संघ (WAGGGS), लन्दन से सम्बद्ध है। अमेरिका में गाइड को गर्ल स्काउट कहते हैं।
भारत स्काउट्स एवं गाइड्स का राष्ट्रीय मुख्यालय
16, महात्मा गांधी मार्गइन्द्रप्रस्थ इस्टेट नई दिल्ली में स्थित है। प्रत्येक राज्य की राजधानियों में स्काउट-गाइड के राज्य मुख्यालय बनाये गये हैं।
परिभाषा, उद्देश्य व सिद्धान्त-
(अ) परिभाषा- भारत स्काउट्स एवं गाइड्स
नवयुवकों के लिए एक स्वयं सेवी,गैर सरकारी,शैक्षणिक
आन्दोलन है जो किसी मूलजाति और वंश के भेदभाव से मुक्त प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है। यह 1907 में संस्थापक लार्ड बेडन पावल द्वारा संकल्पित किये गये लक्ष्य,सिद्धान्त तथा पद्धति के अनुरूप है।
(ब ) उद्देश्य आन्दोलन का उद्देश्य नवयुवकों के विकास में इस तरह योगदान करना है, जिससे उनको पूर्ण शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक अन्त
शक्तियों की प्राप्ति हो, ताकि वे व्यक्तिगत रूप से,जिम्मेदार नागरिकों के रूप में तथा स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समुदायों के सदस्यों के रूप में उपयोगी सिद्ध हो सकें।
( स)सिद्धान्त - स्काउट एवं गाइड आन्दोलन
निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है:
ईश्वर के प्रति कर्तव्य
आध्यात्मिक सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ता ईश्वर
के प्रति आस्था,इन्हें अभिव्यक्त करने वाले धर्म के प्रति
वफादारी तथा इनसे उत्पन्न कर्त्तव्यों को स्वीकार करना।
नोट: 'ईश्वर' शब्द के स्थान पर इच्छानुसार 'धर्म' शब्द
का प्रयोग किया जा सकता है।
दूसरों के प्रति कर्त्तव्य:
स्थानीयराष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति, समझ और सहयोग की भावना से समन्वय रखते हुए अपने देश के प्रति वफादारी।
अपने साथियों की गरिमा तथा विश्व प्रकृति
की अखंडता के प्रति अभिज्ञान सम्मान के साथ तथा
बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया।
भारत में स्काउटिंग- गाइडिंग
लार्ड बेडेन पावेल की पुस्तक ‘स्काउटिंग फॉर ब्वॉयज’ का प्रभाव विश्व के अन्य देशों के साथ- साथ भारत पर भी पड़ा। जिसके फलस्वरुप भारत में भी स्काउटिंग शुरु करने का प्रयास किया जाने लगा। सन् 1910 में भारत में स्काउटिंग के आरम्भ होने पर इसमें केवल अंग्रेज तथा एंग्लो इण्डियन बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता था। सन् 1913 में पं. श्रीराम वाजपेयी ने शाहजहाँपुर में भारतीय बचचों के लिए स्काउटों का एक स्वतंत्र दल खोला। सन् 1913 के उपरान्त एक के बाद एक दल खुलने लगे। सन् 1916 में पूना में लड़कियों को भी पहली बार गर्ल स्काउट (गाइड) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सन् 1916 में ही डाँ. एनीबेसेंट ने मद्रास में ‘इण्डियन ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की नींव रखी। सन् 1917 में पण्डित मदन मोहन मालवीय ने पं.हृदयनाथ कुँजरू और पं. श्रीराम वाजपेयी के सहयोग से इलाहाबाद में ‘अखिल भारतीय सेवा समिति ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की स्थापना कर दी। सन् 1920 तक तो भारत में स्काउटिंग के कई स्वतंत्र संगठन बन चुके थे।
स्काउटिंग गाइडिंग की उत्पत्ति जन्मदाता रॉबर्ट स्टीफेंस स्मिथ बेडेन पावेल अंग्रेजी सेना के अधिकारी थे पहले कल से लेकर फौज में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए अपनी फौज के साथ रहकर युद्ध में भाग लेकर जो कुछ देखा अनुभव किया उसी से प्रेरित होकर स्काउटिंग का प्रारंभ किया स्काउटिंग के प्रारंभ होने की प्रमुख घटनाएं बेडेन पावेल बाल्यकाल में भाइयों के साथ पूरी बनाकर बारी जीवन नोखा चलाना समुद्र में तैरना शिविर लगाना खाना बनाना ऐसे साहसिक कार्य करते थे इस टोली के नायक उनके बड़े भाई थे बिल्कुल चार्टरहाउस की गोद में स्थित था कार्य ना होना अवकाश के छोड़ो में जंगल में घुसकर पक्षियों का पकड़ने का प्रयत्न करना मूल्यों का अध्ययन करना सांस रोककर जमीन पर लेट कर उनका पीछा करने कार्य करते थे जो युद्ध में सहायक हुए सेना में अफसर के रूप में भारतीय अफ्रिका आदि देशों में वहां के रहने वाले लोगों के खान-पान रहन-सहन रीति-रिवाज विभिन्न कमरों की व्यवस्था उनके नियमों को जानने का अवसर लार्ड बेडेन पावेल को प्राप्त हुआ नाइट जो एक तरह के स्काउट होते थे उनकी भी नियमावली व कार्यकलापों को देखा 1899 में दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के अधीन था उस पर एक कबीला हमला कर दिया अंग्रेज सैनिक का हमलावर ज्यादा और साहसी थे उसमें मुकाबला करने की युक्ति स्काउटिंग का उत्पत्ति युद्ध के ऊपर के बालकों को इकट्ठा कर वर्दी पहना कर दिए गए जिन्हें दिनेश आज स्काउट सीखते हैं संदेश भेजना गुप्त चर का कार्य घायलों की देखभाल मरहम पट्टी अधिकारी जो मूर्ति पर जाकर ना हो सके बालकों के जो साहस लग्न का बीपी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और उनके मन में विचार आया क्यों न स्वाबलंबन सद्भावना साहस प्रशिक्षण देकर कुशल नागरिक बनाया जाए और इसे मूर्त रूप दिया जाए या फिर 907 की घटना है लंदन में 19 जुलाई 9 अगस्त 1960 तक अंग्रेज बच्चों का पहला प्रयोगात्मक शिविर लगाकर स्काउटिंग की शुरुआत की 1908 में बच्चों हेतु स्काउटिंग फॉर बॉयज का प्रकाशन हुआ
24 दिसंबर उन्नीस सौ नौ को क्रिस्टल पैलेस लंदन में भौजी स्काउट की रैली का आयोजन हुआ जिसमें 11000 स्काउट एकत्र हुए और उसी समय उस कार्यक्रम को देखकर साथ लड़कियां खाकी वर्दी में मार्च करती खड़ी हो गई इससे आयोजक चकित हुआ लार्ड बेडेन पावेल ने पूछने पर लीडर ने उत्तर दिया हम गर्ल्स स्काउट है और इनकी लगन को देखकर भी पीने लड़कियों है तो एक साथ था कल गाइड खोला 1910 में लार्ड बेडेन की बहन मिस अग्निस बेडेन पावेल की सहायता से लड़कियों के पहले
सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में ‘बोर युद्ध’ के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्ति, अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, कार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकाल, दोनों में, संसार को कितना लाभ पहुँचा सकते हैं।
बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया।
स्काउट शब्द का अर्थ है गुप्तचर या अग्रगामी ।सेना में एक ऐसी कड़ी काम करती है जो फौज के आगे-आगे चलकर अपनी सेना का मार्गदर्शन करती है।
तथा शत्रु सेना क गुप्त भेदों की जानकारी प्राप्त कर अपने अधिकारियों को देती है। उन्हें ही वहां स्काउट कहते हैं।
सार्वजनिक जीवन में स्काउटिंग 'सेवा' का पर्याय बन
चुकी है। आज यह आंदोलन विश्व स्तर पर समाज सेवी
संस्था के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।
स्काउटिंग के संस्थापक लार्ड बेडन पावल थे।उनका
जन्म 22 फरवरी 1857 को इंग्लैंड में हुआ।वे सन् 1876 में सैनिक परीक्षा में सफल हाकर एक फौजी अफसर (सब लेफ्टिनेंट)बनकर भारत में आए। भारत में उन्होनें स्काउटिंग के अनेक प्रयोग किए और इसके आधार पर ‘एड्स टू स्काउटिंग'" नामक पुस्तक लिखी ।
सन् 1899-1900 में दक्षिण अफ्रीका के बोअर युद्ध
में बोअर जाति के दमन का काम एडवर्ड सिसिल व बेडन पावल को सौंपा गया। अंग्रेजों के पास वहां सेना बहुत कम थी। एडवर्ड सिसिल ने मेफकिंग नगर के कुछ लड़कों को प्राथमिक सहायता ,शत्रु का भेद निकालना,संदेश भेजना,सुरक्षा आदि की ट्रेनिंग देकर विभिन्न कार्यों में लगा दिया और प्रशिक्षित सैनिकों को लड़ने के लिये मोर्चे पर भेज दिया। इस योजना से अंग्रेज विजयी हुए। इस घटना से बेडन पावल बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सोचा यदि यही प्रशिक्षण शांतिकाल में बालकों को दिया जाये तो हमारे
बालक अधिक जागरूक, साहसी, स्वस्थ व कर्तव्य परायण बन सकते हैं।
इसी योजना को व्यावहारिक रूप देने के लिये
बेडन पावल ने 20 बालकों को लेकर प्रथम प्रायोगिक
शिविर 29 जुलाई से 9 अगस्त 1907 तक ब्राउन-सी द्वीप ( इंग्लैंड ) में आयोजित किया। इस शिविर के अनुभवों व कैम्प फायर की कहानियों को पहले जनवरी से मार्च 1908 तक छ: पाक्षिक भागों में, फिर 1 मई 1908 को 'स्काउटिंग फॉर बॉयज' के रूप में प्रकाशित किया गया। इसके बाद यह स्काउट आंदोलन विश्व के कोने-कोने में फैलने लगा। भारत में सन 1909 में कैप्टन बेकर ने अंग्रेज बच्चों के लिए बैंगलोर में स्काउट दल खोला। इसमें केवल अंग्रेज व एंग्लोइण्डियन बच्चे ही भाग ले सकते थे। 1915-16 में श्रीमती एनीबेसेन्ट एवं डॉ. अरूणडे के प्रयासों से मद्रास में इंडियन बॉयज स्काउटएसोसिएशन की स्थापना हुई।
भारतीय बच्चों के लिए भारत में सर्वप्रथम 1913 में श्री राम बाजपेयी ने शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में एक स्काउट दल खोला। सन् 1918 में पं. मदन मोहन मालवीय के सुझाव व सहयोग से श्रीराम बाजपेयी व डॉ. हृदयनाथ कुंज ने प्रयाग,इलाहाबाद) में ‘सेवा समिति ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' की स्थापना की।
भारत में कई स्काउट व गाइड संगठन अलग -अलग काम करते रहे। आजादी के बाद 7 नवम्बर 1950
को ‘हिन्दुस्तान स्काउट एसोसियेशन' और 'द ब्वाय
स्काउट एसोसियेशन' मिलकर एक हो गये। इस नए
संगठन का नाम ''भारतस्काउट्स एवं गाइड्स' ' रखा
गया। गर्ल गाइड एसोसिएशन इण्डिया अब भी अलग ही काम कर रही थी। 15 अगस्त 1951 को यह संस्था भी भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में ही मिल गई। भारत में अब केवल यही संस्था केन्द्रीय व राज्य सरकारों द्वारा
मान्य है।
भारत का स्काउट विभाग अन्तर्राष्ट्रीय स्काउट-संघ (WOSM, जेनेवा (स्विटजरलैण्ड) व गाइड विभाग
विश्व गर्ल गाइड तथा गर्ल्स स्काउट संघ (WAGGGS), लन्दन से सम्बद्ध है। अमेरिका में गाइड को गर्ल स्काउट कहते हैं।
भारत स्काउट्स एवं गाइड्स का राष्ट्रीय मुख्यालय
16, महात्मा गांधी मार्गइन्द्रप्रस्थ इस्टेट नई दिल्ली में स्थित है। प्रत्येक राज्य की राजधानियों में स्काउट-गाइड के राज्य मुख्यालय बनाये गये हैं।
परिभाषा, उद्देश्य व सिद्धान्त-
(अ) परिभाषा- भारत स्काउट्स एवं गाइड्स
नवयुवकों के लिए एक स्वयं सेवी,गैर सरकारी,शैक्षणिक
आन्दोलन है जो किसी मूलजाति और वंश के भेदभाव से मुक्त प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है। यह 1907 में संस्थापक लार्ड बेडन पावल द्वारा संकल्पित किये गये लक्ष्य,सिद्धान्त तथा पद्धति के अनुरूप है।
(ब ) उद्देश्य आन्दोलन का उद्देश्य नवयुवकों के विकास में इस तरह योगदान करना है, जिससे उनको पूर्ण शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक अन्त
शक्तियों की प्राप्ति हो, ताकि वे व्यक्तिगत रूप से,जिम्मेदार नागरिकों के रूप में तथा स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समुदायों के सदस्यों के रूप में उपयोगी सिद्ध हो सकें।
( स)सिद्धान्त - स्काउट एवं गाइड आन्दोलन
निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है:
ईश्वर के प्रति कर्तव्य
आध्यात्मिक सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ता ईश्वर
के प्रति आस्था,इन्हें अभिव्यक्त करने वाले धर्म के प्रति
वफादारी तथा इनसे उत्पन्न कर्त्तव्यों को स्वीकार करना।
नोट: 'ईश्वर' शब्द के स्थान पर इच्छानुसार 'धर्म' शब्द
का प्रयोग किया जा सकता है।
दूसरों के प्रति कर्त्तव्य:
स्थानीयराष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति, समझ और सहयोग की भावना से समन्वय रखते हुए अपने देश के प्रति वफादारी।
अपने साथियों की गरिमा तथा विश्व प्रकृति
की अखंडता के प्रति अभिज्ञान सम्मान के साथ तथा
सेना में ‘स्काउट’ शब्द का अर्थ होता है ‘गुप्तचर’।
आज भी सेना में स्काउट होते हैं। स्काउटिंग को सेना के सीमित क्षेत्र से
खींचकर जनसाधारण के बालक- बालिकाओं तक लाने का एक मात्र श्रेय लार्ड बेडेन
पावेल को है। जिन्हें बाद में बी.पी. के नाम से भी सम्बोधित किया जाने लगा था। लार्ड पावेल जिनका पूरा नाम राबर्ट स्टिफेन्सन स्मिथ बेडेन पावेल था, का जन्म 22 फरवरी, 1857 को लन्दन में रेवरेण्ड प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल के घर हुआ था। बी.पी. अभी तीन वर्ष के ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी माताश्री श्रीमती हेनरेटा ग्रेस स्मिथ ने अत्यंत कुशलता एवं साहस से परिवार की देखभाल की।
सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में ‘बोर युद्ध’ के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्ति, अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, कार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकाल, दोनों में, संसार को कितना लाभ पहुँचा सकते हैं। बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया।
भारत में स्काउटिंग- गाइडिंग
लार्ड बेडेन पावेल की पुस्तक ‘स्काउटिंग फॉर ब्वॉयज’ का प्रभाव विश्व के अन्य देशों के साथ- साथ भारत पर भी पड़ा। जिसके फलस्वरुप भारत में भी स्काउटिंग शुरु करने का प्रयास किया जाने लगा। सन् 1910 में भारत में स्काउटिंग के आरम्भ होने पर इसमें केवल अंग्रेज तथा एंग्लो इण्डियन बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता था। सन् 1913 में पं. श्रीराम वाजपेयी ने शाहजहाँपुर में भारतीय बचचों के लिए स्काउटों का एक स्वतंत्र दल खोला। सन् 1913 के उपरान्त एक के बाद एक दल खुलने लगे। सन् 1916 में पूना में लड़कियों को भी पहली बार गर्ल स्काउट (गाइड) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सन् 1916 में ही डाँ. एनीबेसेंट ने मद्रास में ‘इण्डियन ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की नींव रखी। सन् 1917 में पण्डित मदन मोहन मालवीय ने पं.हृदयनाथ कुँजरू और पं. श्रीराम वाजपेयी के सहयोग से इलाहाबाद में ‘अखिल भारतीय सेवा समिति ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की स्थापना कर दी। सन् 1920 तक तो भारत में स्काउटिंग के कई स्वतंत्र संगठन बन चुके थे।
स्काउट गाइड का इतिहास
Reviewed by Harshit
on
March 27, 2020
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