भारत है देश सबकी, शुभकामना जहाँ है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, की प्रार्थना यहाँ है।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, की प्रार्थना यहाँ है।।
ऋषियों ने विश्व मानव को, दृष्टि में रखा था।
सब प्राणियों में उनको, निज रुप ही दिखा था।।
माँगा सदा प्रकृति से, सबके लिए ही उनने।
वसुधा कुटुम्ब ही है, शुचि भावना यहाँ है।।
सब प्राणियों में उनको, निज रुप ही दिखा था।।
माँगा सदा प्रकृति से, सबके लिए ही उनने।
वसुधा कुटुम्ब ही है, शुचि भावना यहाँ है।।
पीड़ित नहीं हो कोई, अज्ञान अभावों से।
निर्बल नहीं हो कोई, दुःख क्लेश कुभावों से।।
सुख बाँट, दुःख बँटाने, की प्रेरणा मिली है।
पर पीर से द्रवित हो, संवेदना यहाँ है।।
निर्बल नहीं हो कोई, दुःख क्लेश कुभावों से।।
सुख बाँट, दुःख बँटाने, की प्रेरणा मिली है।
पर पीर से द्रवित हो, संवेदना यहाँ है।।
सद्ज्ञान के सहारे, भारत जगतगुरु था।
सोने की चिड़िया बनने, पुरुषार्थ कल्पतरु था।।
था शक्तिशाली इतना, थे देवता बुलाते।
अध्यात्म संग भौतिक, संयोजना यहाँ है।।
अब क्रांति विचारों की, अनिवार्य हो गई है।सोने की चिड़िया बनने, पुरुषार्थ कल्पतरु था।।
था शक्तिशाली इतना, थे देवता बुलाते।
अध्यात्म संग भौतिक, संयोजना यहाँ है।।
विधि सप्तक्रान्तियों की, स्वीकार्य हो गयी है।।
हो देश मुक्त व्यसनों, आडम्बरों छलों से।
उज्ज्वल भविष्य वाली, वह सर्जना कहाँ है।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
Reviewed by Harshit
on
March 27, 2020
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